Saturday, 23 January 2016

The Despair

'Soul-mate' Art piece (Artist - Unknown),  Photo - Preeti Tiwari

मुझे नहीं हासिल करना किसी का प्यार जीवन में,
प्यार हासिल करना कभी लक्ष्य नहीं हो सकता,
वह होता है,
मिलता है,
टाइम फ्रेम में उसे पाना नहीं होता..

भरपूर दोस्त,
भरपूर लम्हें,
भरपूर ज़िंदगी,
जिया,
भरपूर जिया,
पर खुद से हासिल क्या !

मेरे हासिल अलग थे,
मेरे हासिल अलग हैं,
बस बैठना है सुकून से अपने दोस्तों के साथ,
फिर धीरे से छेड़ना है उनमें से किसी को मुस्कुराते हुए,
फिर मजाक उड़ा कर तालियाँ बजा कर हँसना है,
फिर पड़ने वाली मार के डर से तेज़ी से उठ के भागना है,
और
फिर धीरे से भूल जाना है कि वो पल तब्दील हो गया है बचपन वाली मारम-पिट्टी के खेल में|

चाहिए बहुत कुछ..
पर अफ़सोस कि मेरी प्राथमिकताओं में कहीं राष्ट्र सेवा नहीं है,
अच्छी नौकरी, अच्छा घर भी नहीं,
एक छैल- छबीला और सजीला लड़का भी नहीं,
एक अच्छा परिवार जैसी ख्वाहिशें कभी शामिल ही नहीं हो पाते,
जेहन में आते भी हैं, तो ठहर नहीं पाते..

मेरी प्राथमिकता बस एक दौड़ है,
एक बार दौड़ना है सांस के फूल जाने तक,
हाँफते हुए पसीना- पसीना हो जाने तक,
थक कर घुटनों के बल बैठ कर देर तक लम्बी – लम्बी साँसे खींचने तक,
मुझे दौड़ना है एक बार फिर,
बचपन की उस दौड़ में,
जिसमें खेल-खेल में फर्स्ट प्राइज़ जीता था,
उस दौड़ को दोहराना एक सपना है,
एक बार फिर पूरे उत्साह से भाग लेना है,
अपनी भरपूर कोशिश के बाद इस बार उसमें थर्ड प्राइज़ जीतना है..

पर सड़क दुर्घटना में हुई मौत बार-बार सताती है..

दौड़ का एक सपना हो जाना और मौत के सपने के रोज़ सच होते जाने की दौड़...
और उस पर भी कदमताल न मिलाने की वजह से छूटा हुआ यह खाली हाथ..

( एक लम्बी थकान के बाद )


* प्राथमिकताएं क्यों बदल - बदल जातीं हैं..!!



प्रीति तिवारी

No comments:

Post a Comment