आजकल मेरी स्पीड पर
स्पीड ब्रेकर लगा रहता है| यूँ भी ज्यादा तेज़ी से चलने की मुझे आदत नहीं| एक वजह यह
भी है कि ज्यादा तेज़ी से चल ही नहीं पाती तो चलूंगी कैसे..! बहरहाल, मुझे वैसे भी ज्यादा ‘मदद’ की ज़रूरत
नहीं पड़ती .. पर लोग ‘बाग़’ मदद करते रहते हैं समय - समय पर .. कभी - कभी मदद ले
लेने में भी कोई बुराई नहीं है|
खैर, फिलहाल मसला ये है कि हाल फिलहाल में हम हॉस्पिटल से घर के लिए निकले| (‘हम’ यानी मैं, यहाँ एकवचन लगाने का मन नहीं है!) आम तौर पर ऑटो लेना आदत हो गई है| शुरुआत में कैब लेना होता था पर कैब कभी जंचा नहीं| इसलिए सिर्फ ऑटो का ऑप्शन बचा| जेब में देखा तो पता चला कि ऑटो के लायक पैसे नहीं हैं| सोचा अपना मेट्रो जिंदाबाद| चलने में लंगड़ाहट अभी बाकी है| सो धीरे - धीरे चलना शुरू किया|
मेट्रो तक चल कर जाना .. फिर सीढ़ियाँ ... उफ्फ .. साथ में एक जनाब बातचीत में थे.. हमने भी सोचा कि सफर में लोग मिलते रहें तो कारवां बनता है| हमने बनने दिया कारवां| फिर कुछ कदम पर एक और जनाब साथ हो लिए.. हमने स्टार वाली फीलिंग को झट से ले लिया| हम तीनों साथ में मेट्रो स्टेशन तक गए| मैं और साथ में दो लोग| अब सीढ़ियाँ उतरने की बारी थी|
सीढ़ियाँ उतरने में
सबसे बड़ा रिस्क है| एक तो पैर उतनी सहजता से नहीं मुड़ता कि ‘खट-खट’ उतर जाएँ, गति
की समस्या एक बड़ी समस्या है| दूसरा, हम स्लो हो गए मतलब ये थोड़े ना है कि दुनिया
स्लो हो गई! आसपास से निकलते लोग जाने अनजाने तेज़ी से निकल जाते हैं और अपने को
धक्का लग जाता है| सीढ़ियों पर धक्का यानी लाइफ में फिर से एक लम्बा बेड रेस्ट|
हमने तय किया कि लिफ्ट का ऑप्शन सही रहेगा| (इस बार ‘हम’ का मतलब मैं और साथ वाले दूसरे जनाब, यानी द्विवचन! ) हम चलते गए लिफ्ट की तरफ| तीसरे जनाब धीमी गति से परेशान हो पल्ला छुड़ा कर धीरे - से मुस्कुरा कर खिसक लिए| तो, साथ में मौजूद जनाब हमारी ‘मदद’ कर रहे थे|
उन्होंने बीच - बीच में कई बार कहा कि नियमों का पालन करना चाहिए| और यह भी कहा कि वे ‘मुझ जैसे’ लोगों की मदद करते हैं, ‘दिल से’| हम भी मुस्कुरा दिए, ‘दिल से’| साथ चल रहे ‘मददगार साथी’ ने लिफ्ट के पास पहुँच कर लिफ्ट का बटन दबा कर मदद की| हमने लिफ्ट में कदम रखा और उन्होंने अन्दर आकर फिर बटन दबा कर दोबारा मदद की| बटन दबाने के बाद इससे पहले कि लिफ्ट का दरवाज़ा बन्द हो, वो तकरीबन मुझे धक्का देते हुए तेज़ी से बाहर निकल गए| धक्का गिरा देने के लिए काफी था| बस झटके से हाथ में लिफ्ट के अन्दर का रॉड आ गया और मैं बच गई| दरवाज़ा बन्द हुआ| लिफ्ट नीचे पहुँची| लिफ्ट के नीचे पहुँचते ही देखा कि वो महाशय सामने से दौड़ते हुए मेरी तरफ आ रहे थे| (जान बचने के बाद ‘भौकाल वाला व्याकरण’ कहीं गायब हो जाता है इसलिए यहाँ एकवचन के लिए ‘मैं’ और ‘मेरी’ ही ठीक है! ) बाई गॉड गुस्सा आ गया, उन्हें आता देखकर| इससे पहले कि मैं कुछ कहूँ, उन्होंने फूलती हुई साँस के बीच टुकड़े - टुकड़े होते शब्दों में कहा, “वो मैं... मैं ... मैं लिफ्ट में नहीं चढ़ता... वो तो सिर्फ .. सिर्फ वृद्धों और विकलांगों के लिए होता है ना! इसीलिए आपको लिफ्ट के अन्दर छोड़ कर मैं निकल आया| बहुत पहले कसम खाई थी कि जब तक टाँगे सलामत हैं, नहीं चढूँगा| समझ रही हैं ना आप!! समझ ही रही होंगी!! लोग कहाँ मानते हैं नियमों को!! हम तो कसम से फॉलो करते हैं नियमों को !! आप तो समझ रही हैं ना!!”
फोटो - गूगल भण्डार से ( आर्टिस्ट का नाम तस्वीर में मौजूद ) |
कसम से, उस मासूम
आदमी को ऊपर से नीचे तक तीन - चार बार देखने के बाद भी जवाब नहीं सूझा| जवाब देने
की कोशिश में हँसी आने वाली थी! हद तो ये कि दिमाग बार - बार कह रहा था कि हँसी
नहीं, गुस्सा आ रहा है|
मूर्ख आदमी !! अपनी एक महान कसम की वजह से तुमने एक “ज़रूरतमंद बेचारे इंसान” को लिफ्ट में अन्दर घुसा के तकरीबन धक्का देते हुए बाहर निकलने जैसा बहादुरीभरा कारनामा किया!!! सिर्फ इसलिए क्योंकि कसम खाई है और कसम से उसे फॉलो करना था !!!
मूर्ख आदमी !! अपनी एक महान कसम की वजह से तुमने एक “ज़रूरतमंद बेचारे इंसान” को लिफ्ट में अन्दर घुसा के तकरीबन धक्का देते हुए बाहर निकलने जैसा बहादुरीभरा कारनामा किया!!! सिर्फ इसलिए क्योंकि कसम खाई है और कसम से उसे फॉलो करना था !!!
हमारा मुंह खुला, ‘मदद
के लिए शुक्रिया’ जैसा कुछ कहने के लिए| उसके बोल कुछ इस प्रकार थे, “कर लेओ कसम
पूरी अपनी, हमें माफ़ करो! अगली बार जो लिफ्ट का बटन दबाने जितनी भारी मदद की तो
कसम से टाँगे तोड़ के लिफ्ट में ही बैठा देंगे! मदद कर रहे थे कि रायता !!”
उसके चेहरे पर प्यार में धोखा खाए आदमी वाला भाव था| अचानक मेरे अन्दर का इंसान जागा| दिल ने कहा कि अब वो महान आदमी किसी की मदद नहीं करेगा| ‘दिल से’ मदद करने वाले को ऐसे नहीं बोलना चाहिए| हौसला टूट जाएगा| मुड़ कर चार कदम चले उस भले मानस को हमने कहा, ‘सुनिए, मदद के लिए शुक्रिया!”
मेरा दिल अब भी कह रहा है
कि जो मैंने पहले कहा था, वही मेरा सच था!
अल्लाह बचाए ऐसे मदद करने वालों से !
अल्लाह बचाए ऐसे मदद करने वालों से !
safer me akser Ghatnayee ghat hi jati h...badiyan tha preeti
ReplyDeleteहाँ नासी, ऐसा होता है ..
Deletesafer me akser Ghatnayee ghat hi jati h...badiyan tha preeti
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