Monday 16 December 2013

महिला विमर्शों का भाषायी रुख

निर्भया बलात्कार कांड को एक साल पूरा हो गया है। भारत में महिला विमर्शों का रुख तय करने के लिहाज से यह एक साल बहुत महत्वपूर्ण रहा है। न सिर्फ बलात्कार, बल्कि महिलाओं से जुड़े यौन हिंसा के हर छोटे-बड़े मामले को केंद्र में रखकर चलायी गयी बहसों ने महिला विमर्शों के इतिहास में एक सुनहरा अध्याय जोड़ा है, इसमें शायद ही कोई संदेह है। मुख्य धारा मीडिया और वैकल्पिक जन दायरों ने बढ़-चढ़कर इन बहसों में हिस्सा लिया और कहना होगा कि कई अवसरों पर निर्णायक रूप से अपना प्रभाव भी छोड़ा। लेकिन इसके साथ-साथ बीते एक साल का महत्त्व इस बात में भी है कि इस दौरान बलात्कार और यौन हिंसा से जुड़े विमर्शों ने एक खास तरह की भाषा का सृजन किया है। यह भाषा कई अर्थों में खास है और इसके मूल्यांकन से महिला विमर्शों की दिशा और उसकी राजनीति के बारे में महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

Tuesday 3 December 2013

बन्द गली के पार !!

अनंत की झलक!      (-अपने कैमरे से खींची गई तस्वीर)

हाल ही में परीक्षा संबंधी कुछ शर्तों को पूरा करने के लिए मैं और मेरे कुछ मित्र दिल्ली के द्वारका इलाके में गए थे। वापसी के दौरान एक मित्र का फोन बजा। उसने हमसे कुछ दूर जाकर थोड़ी देर बात की। हमें उस बातचीत में से राममनोहर लोहिया अस्पताल, डॉक्टर, जान-पहचान जैसे कुछ शब्द सुनाई दिए। वह बातचीत खत्म कर लौटा तो इन शब्दों को सुनने के बाद मैंने उससे पूछ लिया कि क्या हुआ? सब ठीक तो है न!उसका जवाब था कि किसी ने आत्महत्या की कोशिश में छत से छलांग लगा दी है और अभी उसके तुरंत इलाज के लिए जान-पहचान की जरूरत है। आत्महत्या की स्थिति तक पहुंचने वाले लोगों के संबंध में मेरा मित्र कुछ अलग विचार रखता था, इसलिए उसने कायरताऔर बुजदिलीजैसे कुछ शब्दों में पूरे मसले को बांध दिया और यह वाकया महज चार-पांच मिनटों में आया-गया हो गया।