Thursday 12 November 2015

वह आया मेरे शहर में

क़ुतुब मीनार की ओर जाने वाली मेट्रो प्लेटफार्म नम्बर एक से रवाना होने वाली है.”

उसने सुना.. वह मेरे पास आया.. रुका.. फिर पूछा, “हुडा सिटी सेन्टर वाली (मेट्रो) कहाँ से जाएगी..?”

मैंने कहा, “यहीं से, या फिर इसी मेट्रो से चले जाइए, आगे जाकर एक स्टॉप पहले प्लेटफार्म पर उतर जाइएगा.. ठीक वहीं अगली मेट्रो आएगी.. वही पहुँचा देगी हुडा सिटी सेन्टर..”

उसने रूककर कहा.. “इतना कहाँ समझ में आता है मैडम!”

मैंने कहा, “यहीं रुके रहिये फिर, अगली मेट्रो का इंतज़ार कीजिये, अगली वाली जाएगी|”

वह कोने में जाकर खड़ा हो गया.

तब तक मेट्रो रवाना हो चुकी थी.

अगली मेट्रो का प्रतीक्षा समय 6 मिनट था.

"Meanwhile" (oil on canvas) - Achintya Malviya's work. 
अगली मेट्रो वह मेट्रो होगी जिसकी उसे ज़रूरत है, यह जान कर वह निश्चिन्त हुआ.

अब वह चारों तरफ आश्चर्य भाव से देख रहा था. वह चारों तरफ आश्चर्य से देखता रहा और मैं उसके देखने को!! वह रंग-बिरंगे कपड़ों में सजे-धजे इंसानों को देखता.. पूरी तरह.. ऊपर से नीचे तक देखता.. किसी के फोन पर हाथ हिला-हिलाकर बात करने को देखता.. किसी के फोन ऊपर उठा कर खींचीं जा रही सेल्फी को देखता.. किसी को प्लेटफार्म पर दिख रहे शीशे में अपने बालों को ठीक करते देखता.. कोने में खड़ी अपने “गोल्डन झुमकों” पर इतराती लड़की को उसने पूरी नज़र भर कर देखा..

Friday 23 October 2015

We or Our Nationhood Re-defined


(आनंद पटवर्धन के लेक्चर का अनूदित व संपादित संस्करण, मूल लेख के लिए क्लिक करें- http://patwardhan.com/?page_id=2640 )

अनुवाद - प्रीति तिवारी

गाँधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का सदस्य था और ‘हिन्दू महासभा’ से भी जुड़ा था। हत्या में बराबर के हिस्सेदार नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे ने जेल से बाहर आने के बाद एक इंटरव्यू में इस बात को स्वीकारा कि नाथूराम और उसने कभी आरएसएस छोड़ा ही नहीं था। यही नहीं उसने आरएसएस और सावरकर को बचाने के लिए झूठ भी बोले थे।

गाँधी की हत्या के बाद गोलवलकर व अन्य आरएसएस कार्यकर्ताओं को जेल भेज दिया गया। रामचंद्र गुहा लिखते हैं, “(हत्या से दो महीने पहले) 6 दिसम्बर 1947 को गोलवलकर ने दिल्ली के करीब गोवर्धन शहर के पास, आरएसएस कार्यकर्ताओं की एक बैठक बुलाई। पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार इस बैठक में यह चर्चा हुई कि किस तरह कांग्रेस के प्रमुख व्यक्तियों की हत्या की जाए ताकि जनता में मन आतंक पैदा किया जाए और उन्हें अपनी जद में लिया जाए।”

एम एस गोलवलकर 
 जिन सरदार वल्लभभाई पटेल की दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति बनाने का वायदा नरेन्द्र मोदी ने किया है उनका इस मामले पर यह कहना था कि, “सभी आरएसएस नेताओं के भाषण साम्प्रदायिकता के जहर से भरे थे। इस जहर की अंतिम परिणति के रूप में, एक माहौल बनाया गया था, जिसमें इस तरह की एक भीषण त्रासदी संभव हो सकी - - - आरएसएस के लोगों ने खुशी व्यक्त की और गांधी जी की मृत्यु के बाद मिठाईयां बांटी"। (एम एस गोलवलकर और एसपी मुखर्जी को सरदार पटेल द्वारा लिखे कुछ पत्रों के अंश।)

आरएसएस के पास लिखित संविधान और आधिकारिक सदस्यों की कोई सूची न होने के कारण गाँधी की हत्या में आरएसएस की संलिप्तता कभी साबित नहीं हो सकी। अतः जून 1949 में आरएसएस से प्रतिबंध हटा लिया गया। जिन्हें यह लगता है कि गाँधी की हत्या पूरी तरह से एक पृथक कृत्य था उन्हें फिर से सोचने की ज़रूरत है।