देख लिया बदलते मौसमों का एक पूरा चक्र,
अब झर जाना चाहिए पतझर का बहाना कर कि,
जिसमें (अपनी उम्र जी चुका?) पत्ता धीरे - से शाख छोड़ देता है,
जिस पर पीले पड़ जाने का फ़िज़ूल आरोप लगा देते हैं लोग..
पतझर का झरा हुआ पत्ता पीला नहीं होता..
कभी देखना उसे, वो सुनहला होता है..
एक उम्र जीने के बाद वो निखर जाता है..
तुम उसके सुनहलेपन को पीलापन कहकर गिरा देने का बहाना बना लेते हो...
वो पत्ता जो अपनी सारी नमी तुम्हारे नाम कर चुका..
तुम उसे सख्त और रुखा कह देते हो..
खुद से ना गिरे तो झकझोर कर सही..
गिराते ज़रूर हो..
उसके सुनहलेपन को अगर पीला ना कहो तो उसकी उम्र बढ़ जाएगी..
एक सुनहला पत्ता तुम्हारे पीला कहते ही तुम्हारी ख्वाहिश से झर जाता
है..
और तुम ऋतु वर्णन में उसे ‘पतझर’ कह जाते हो...
फोटो श्रेय - मि. रमण सिन्हा |
चालाकी भरा है मौसमों का विभाजन भी..
सोचती हूँ कि पतझर को मौसम की शक्ल किसने दी होगी..
और क्यों !!
पतझर मौसम नहीं होता ..
पतझर, एक रिवाज़ है..
एक बहाना है ..
उसे बनाया गया है..
प्रकृति का नियम घोषित करने के लिए..
कुछ नया पाने की चाह में..
कुछ पीला कह कर हटाने के लिए ..
जबकि अस्ल पीला वहाँ मौजूद है जहाँ तुम्हें बसंत दिखाई देता है ..
'प्रेम' जीवन में बसंत के पीले फूल की तरह नहीं,
पतझर के अटके हुए सुनहले पत्ते की तरह आता है..
उसे गिरने से रोके रखना ही 'प्रेम' है...
'प्रेम' जीवन में बसंत के पीले फूल की तरह नहीं,
पतझर के अटके हुए सुनहले पत्ते की तरह आता है..
उसे गिरने से रोके रखना ही 'प्रेम' है...
मुझे माफ़ करना शमशेर..!
मैं उस शाख पर अटके हुए तुम्हारे उस पत्ते को झरने से नहीं रोक पाई,
जिसे तुमने कभी ज़माने के दबाव में पीला कह दिया था..
वो सुनहला पत्ता आखिर झर गया पतझर के बहाने..
और लोग बंसत देखते रह गए !!
एक और बसंत बीत चला ..
एक और बसंत फिर आएगा पतझर के बहाने..
किसी सुनहले पत्ते को गिरा कर ..
(कविता
जीवन का ड्राफ्ट होती है.. इसलिए हार मानने से पहले.. भी एक कविता होती है..)
मुझे
हौसला देना शमशेर..!!
मैं
उस शाख पर अटके हुए तुम्हारे उस पत्ते को गिरने से अन्त तक रोके रखना चाहती हूँ...
उस पत्ते के टिके रहने और झर जाने के बीच कहीं मेरा प्रेम है..!
* तुम पतझर के उसी अटके हुए पत्ते की तरह हो.. जिसे गिरने न देने में मेरा जीवन लगा है ..
- प्रीति तिवारी
Bahut shandar Maza aa Gaya padh kar
ReplyDeleteThank you shubham .. :)
Deletelovely poem
ReplyDeleteMany thanks sir for finding out time and reading.. :)
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