Wednesday, 10 February 2016

घोंचू का भेलेनटाईन डे उर्फ प्रेम उर्फ बसंत पंचमी का ऐतिहासिक दिन #2

(शेष से आगे)..... 

...‘कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ’ गीत उसे बहुत पसंद है पर उस गाने में जब नायक नाच-नाच कर कहता कि ‘सोचा है ये कि तुम्हें रास्ता भुलाएं, सुनी जगह पे कहीं छेड़े डराएं’ सुनते ही उसे इस गाने से घृणा होने लगती | ‘रास्ता भुलाएँ, छेड़े डराएं !!’ उसकी नज़र में इससे बड़ी बेशर्मी और कुछ नहीं ! उसके लिए प्रेम यानी कि 24 कैरेट शुद्ध सोना |

उलझन और बढती जा रही है | उसने कहीं से सुन लिया है कि हसीना के घर रिश्ते आ रहे हैं | शादी !! ये कैसे हो सकता है !! कोई अदना - सा आदमी जिसे प्रेम की ‘अपरिभाषित वाली परिभाषा’ तक मालूम हो वह हसीना से विवाह करेगा !! फिर वही ‘किस’ और ‘सेक्स’ ! उफ्फ ये कैसे हो सकता है ! वो ऐसा नहीं होने देगा | अब कुछ करना होगा |

कुछ करना होगा पर क्या ! उसे कुछ सूझ नहीं रहा |

कई महीने कई दिन गुज़र गए | उसने फ़रवरी महीने की विशिष्टता के बारे में भी सुना था | फ़रवरी के महीने में एक हफ्ता आता है जिसमें प्रेमी प्रेम का इज़हार किया करते हैं | पहला दिन यानी कन्या को पुष्प समर्पित करने का दिन | यूँ तो इस दिन लड़की भी लड़के को फूल देकर प्यार का इज़हार करती है | पर लड़की का इज़हार करना घोंचू को अच्छा नहीं लगा | घटिया पाश्चात्य व्यवहार!! कन्या से प्रेम किया जाता है | प्रेम के लिए निवेदन की अवधारणा बनी है | यह एक पुरुष आधारित कर्तव्य है | कन्या स्वयं ऐसा करे करे यह बात उसे जमी नहीं |

दूसरे दिन मीठा खिलाने की अवधारणा को भी घोंचू ने समझा | उसे फिर चिढ़ हुई कि बाज़ार व्यवस्था ने किस तरह मीठे के पर्याय चॉकलेट को बना कर इस पवित्र दिन को ‘चॉकलेट डे’ कह दिया | इसी तरह पूरे सप्ताह कुछ न कुछ चलता रहे और फिर 14 फ़रवरी को प्रेम का निवेदन | आहा ! सुन्दर ! घोंचू को इसमें कोई विचारधारात्मक आपत्ति नहीं लगी | सिवाय इसके विदेशीपन के!! घोंचू ने कई धर्मग्रंथ भी उलट पलट कर देखे ताकि वह सिद्ध कर सके कि ‘वेलेंटाइन डे’ की प्रेमपरक अवधारणा वस्तुतः भारत की देन है | इस काम में समय लग रहा है | अतः तय किया कि यह काम बाद में किया जाएगा | पहले उसे ‘स्वप्नप्रिया’ को उस ढोंगी आदमी से बचाना है जिसे प्रेम के बारे में कुछ नहीं पता पर जिसका विवाह उसकी स्वप्नप्रिया से तय होने वाला है|
घोर संकट ! घोंचू के दिल का आलम न पूछिए | फ़रवरी का महीना आ गया | घोंचू के दिल की धड़कन बहुत तेज थी | उसके दिल में ‘गिटार’ बज रहा था | पर घोंचू ने नहाने के बाद तैयार होते समय खुद को आईने में देख कर आत्मस्वीकृति दी | उसने मुस्करा कर कहा कि, “मेरे हृदय में सारंगी बज रही है | यह प्रेम नहीं तो और क्या है !”

उसे हृदय की सारंगी के अलावा आसपास ढोल-नगाड़े भी सुनाई दे रहे थे| हो भी क्यों न ! वह विजय अभियान पर निकल रहा था | पहला ही दिन, वह फूल लेकर निकला | मंद – मंद मुस्कान | पर यह क्या, घोंचू जहाँ से गुज़र रहा है वहाँ हर दूसरा ऐरा- गैरा लड़का हाथ में फूल लिए दिखाई दे रहा है | ‘अब प्रेम को सब समझने लगे हैं’, यह बात उसे पची नहीं | इसका मतलब यह कि ये सब झूठे हैं | फिर वही ‘किस’ और फिर ‘सेक्स’ वाली बात उसके मन- मष्तिस्क पर हावी हो गई |

क्रोध !  भीषण क्रोध !! घोंचू को प्रेम के हल्केपन से परहेज़ है | वह इस दिखावी दुनिया में शामिल नहीं हो सकता | आखिर किसी की जान गई | नहीं ! नहीं !! घोंचू मानसिक स्तर पर इतना कमजोर नहीं कि दुनिया में प्रेम के उथलेपन को देख कर आत्महत्या कर ले | दरअसल वो इतना हिम्मती भी नहीं कि ‘किस’ और ‘सेक्स’ वाला घटिया इश्क करने वाले एक- दो आशिकों को ही निपटा दे | उसने मासूम फूल को ज़मीन पर फेंका और कुचल दिया | जोर की आवाज़ न तो फूल के ज़मीन पर फेंके जाने पर हुई, न ही कुचले जाने पर | मासूम फूल की जान गई |

वह घर लौट आया | तन्हाई भरा एक कोना ढूँढ कर जी भर कर रोया | रोते - रोते कई बार दोहराया कि “उफ्फ ये दुनिया को प्रेम को कभी नहीं समझ पाएगी” | ऐसा कहते हुए वह बार –बार रोने की पिच में बदलाव करता रहा | उसे हर पल यह लगता रहा जैसे कहीं कोई कैमरा यह सब दर्ज कर रहा है | जब वह नहीं रहेगा तब दुनिया कोशिश करेगी उसके दर्द को समझने की और अपनी नासमझी को भी ! बहरहाल बांका नौजवान वह हौसला नहीं हारा | रोने के बाद यूँ भी कहीं से हौसला उसे यह सोच कर मिल गया कि कहीं किसी कैमरे में यह सब दर्ज हो गया है | वह हार नहीं मान सकता ! कभी नहीं !

अगले दिन वह तैयार हुआ ! फिर एक बार ! पुष्प-समर्पण का दिन बेकार हुआ | अब मीठा खिलाने वाला दिन आ गया | वह चोरी - चोरी ‘कुछ मीठा हो जाए’ वाली बच्चन साहब की बात मान कर ‘डेयरी मिल्क’ खाया करता था | पर वह बाजारवाद का विरोध भी करता था इसलिए एक चॉकलेट उसी दिन खरीद कर उस व्यवस्था को और मज़बूत नहीं करना चाहता था |

अपने दिमाग का भरपूर इस्तेमाल करते हुए उसने महंगी मिठाई कलाकंद खरीदी | भरपूर स्वाद उनके दिलोदिमाग में घुल गया | आज उसने आसपास हाथों में चॉकलेट देख कर हौसला नहीं खोया | धीरे-से मुस्कराते हुए अपने कलाकंद के बारे में सोचा | हसीना सामने से आ रही है | अब ! अब क्या! अकबकी में डिब्बा खोल के बुदबुदा दिया | हसीना मुस्कुरा दी | वो फिर बुदबुदाया | इस बार समझदारों की तरह हसीना बोली, “अरे इसमें क्या शर्माने वाली बात है ! नौकरी मिली है खुल के बोलो |” प्रेम चारों खाने चित्त हो गया | घोंचू फिर भी मुस्कुरा दिया | डिब्बा थमा के चुपचाप खड़ा हो गया |

हसीना प्रेम की बड़ी-बड़ी परिभाषाएँ नहीं जानती थी | हसीना – एक निहायत मासूम लड़की | वो कलाकंद की सारी मिठाई को नौकरी की बधाई समझ कर खा गई | घोंचू को प्रेम की मासूमियत पर भी प्रेम आया | घोंचू इस बात से ही खुश था कि वो बात कर पाया और ध्यान हासिल कर पाया | इसी प्रकार क्रमशः सारे ‘आदान – प्रदान दिवस’ बीतते गए पर दिल की बात जुबान पर न आई | घोंचू ने लगातार आईने के सामने कोशिशें कीं |

और फिर एक दिन... उनसे पूरे मन से तोहफा लिया और अगले ही पल हसीना के सामने | इस बार कि हसीना कुछ कहे उससे पहले ही बोलना शुरू किया | पहली ही पंक्ति में हडबड़ा कर यह बता गया कि बसंत पंचमी का दिन शुभ माना जाता है | इस दिन देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है | मामला खराब हो चुका था | पर उसके फौरी दिमाग ने अब भी संभलने का हौसला रखा | सहायता पीले फूल वाले शाहरुख के माहौल ने की | अंततः कह गया कि, “बसंत पंचमी से बच्चे कलम थामने की शुरुआत करते हैं, नया मौसम शुरू होता है, ठंडी ताज़ी हवा बहनी शुरू होती है, पीले फूल खिलते हैं, सरसों लहलहा जाती है, पीला हलवा खाया जाता है, आम बौराने लगते हैं, बच्चों का शिक्षार्थी जीवन शुरू होता है, बड़ों का भी, बसंत एक ऐसी ऋतु है जिसमें सबकुछ शुभ होता है, क्या आप, नहीं तुम, नहीं आप, मेरे जीवन में बसंत बनकर आएँगी????”

उसकी सांस तेज़ी से चल रही थी|

हसीना ने दो टूक जवाब दिया, “ओह्ह हाँ”|

जवाब सुनकर वह हसीना से ज्यादा लाल हो चुका था|

और इस प्रकार घोंचू ने अन्य प्रेमियों से दो दिन पहले पवित्र बसंत पंचमी के अपने प्रेम को हासिल किया| उसके बाद उसने पूजा की या साधना इसके बारे में बात करना ‘निजता का उल्लंघन’ माना जाएगा|

अब हसीना वास्तव में उसकी स्वप्नप्रिया थी| आप सब कहानी में उस मासूम हृदय व्यक्ति के चांटा खाने का इंतज़ार कर रहे थे| गलत बात ! यह कहानी सुखांत है|

विश्व प्रेमियों से एकमात्र निवेदन – प्रेम करें| पूर्वी - पश्चिमी के फेर में न पड़ें| वेलेंटाइन मानें या बसंत पंचमी मान लें, पर प्रेम करें| बनें घोंचू !


सप्रेम!

प्रीति तिवारी

4 comments:

  1. Best Lines : ऐसा कहते हुए वह बार –बार रोने की पिच में बदलाव करता रहा | उसे हर पल यह लगता रहा जैसे कहीं कोई कैमरा यह सब दर्ज कर रहा है | जब वह नहीं रहेगा तब दुनिया कोशिश करेगी उसके दर्द को समझने की और अपनी नासमझी को भी !

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    1. इन्सान कई बार उसी कैमरे की नज़र में ख़ुद को दोषी होने से बचाने के लिए सही फ़ैसला सोचने पर ख़ुद को मज़बूर कर देता है .. बहुत ताक़त होती है उस 'हिडन कैमरे' में .. :)

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  2. अंत बेहद रोमांचक है . अप्रत्याशित तो है ही . बधाई.

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    1. सर, आपको अच्छा लगा.. जान कर बहुत अच्छा लगा .. :)

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