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Wednesday, 19 April 2017

ऊँची तोर अटारी, मैंने पंख लिए कटवाए

एक खास जगह पर बैठ कर चाँद को देखना.. और फिर इस तरह देखना कि उसके दिखने की दिशा को बदलते हुए देखना.. ‘धीरे - धीरे चल चाँद गगन में’ जैसे गाने को गाना और फिर मुस्कुरा कर खुद से कहना कि गाना रोमांटिसिज़्म में लिखा गया है.. चाँद धीरे ही चलता है.. चाँद का चलना पृथ्वी के चलने की तुलना में कम है.. इसलिए चाँद पर इलज़ाम ठीक नहीं..!  और फिर यह भी सोच लेना कि हर जगह ज्यादा दिमाग लगाना भी अच्छा नहीं..! फिर ‘आजा सनम मधुर चांदनी में हम तुम मिलें तो वीराने में भी आ जाएगी बहार’ को ढूँढ कर निकालना और कई बार सुनना.. ‘आधा है चंद्रमा रात आधी, रह ना जाए तेरी मेरी बात आधी’ को सुन कर खुश हो लेना.. और उसके बाद ‘चाँद फिर निकला मगर तुम ना आए’ बजा कर रात के होने, गहराने और बीतने को महसूस करना.. ये कई कई बार दोहराई जाने वाली गतिविधि है.. या कहूँ कि बहुत सारी गतिविधियों में से एक है.. कुछ खास आदतों में शुमार.. ये कुछ उन खास आदतों में शुमार है जिन्हें बदलने का ख्याल कभी आया ही नहीं.. वक्त धीरे धीरे कुछ आदतें डालता है.. और लेकिन फिर बहुत चुपचाप उन्हें बदलने को मजबूर कर देता है.. 


तकरीबन एक से डेढ़ साल बाद घर लौटना मुक्कमल हुआ.. पिछले दिनों भी चाँद वैसा ही लगा लेकिन हमारे दरम्यान कुछ ज़रा सा बदला हुआ था.. नहीं! चाँद नहीं.. शायद हमारी बातचीत.. शायद फ़िल्मी अंदाज़ में बजने वाले वो शौकिया गाने.. शायद वो गानों को क्रम से बजाने का उत्साह.. और चाँद से होने वाली बातचीत की लय.. उसकी और मेरी भाषा.. उसमें मिली हुई हँसी..  उस ‘ज़रा से’ बदलने में जाने क्या क्या शामिल हो गया..!

Tuesday, 21 June 2016

कसम ली – बाई गॉड सीरियसली!

आजकल मेरी स्पीड पर स्पीड ब्रेकर लगा रहता है| यूँ भी ज्यादा तेज़ी से चलने की मुझे आदत नहीं| एक वजह यह भी है कि ज्यादा तेज़ी से चल ही नहीं पाती तो चलूंगी कैसे..! बहरहाल, मुझे वैसे भी ज्यादा ‘मदद’ की ज़रूरत नहीं पड़ती .. पर लोग ‘बाग़’ मदद करते रहते हैं समय - समय पर .. कभी - कभी मदद ले लेने में भी कोई बुराई नहीं है|

खैर, फिलहाल मसला ये है कि हाल फिलहाल में हम हॉस्पिटल से घर के लिए निकले| (‘हम’ यानी मैं, यहाँ एकवचन लगाने का मन नहीं है!) आम तौर पर ऑटो लेना आदत हो गई है| शुरुआत में कैब लेना होता था पर कैब कभी जंचा नहीं| इसलिए सिर्फ ऑटो का ऑप्शन बचा| जेब में देखा तो पता चला कि ऑटो के लायक पैसे नहीं हैं| सोचा अपना मेट्रो जिंदाबाद| चलने में लंगड़ाहट अभी बाकी है| सो धीरे - धीरे चलना शुरू किया|

मेट्रो तक चल कर जाना .. फिर सीढ़ियाँ ... उफ्फ .. साथ में एक जनाब बातचीत में थे.. हमने भी सोचा कि सफर में लोग मिलते रहें तो कारवां बनता है| हमने बनने दिया कारवां| फिर कुछ कदम पर एक और जनाब साथ हो लिए.. हमने स्टार वाली फीलिंग को झट से ले लिया| हम तीनों साथ में मेट्रो स्टेशन तक गए| मैं और साथ में दो लोग| अब सीढ़ियाँ उतरने की बारी थी|


Wednesday, 10 February 2016

घोंचू का भेलेनटाईन डे उर्फ प्रेम उर्फ बसंत पंचमी का ऐतिहासिक दिन #2

(शेष से आगे)..... 

...‘कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ’ गीत उसे बहुत पसंद है पर उस गाने में जब नायक नाच-नाच कर कहता कि ‘सोचा है ये कि तुम्हें रास्ता भुलाएं, सुनी जगह पे कहीं छेड़े डराएं’ सुनते ही उसे इस गाने से घृणा होने लगती | ‘रास्ता भुलाएँ, छेड़े डराएं !!’ उसकी नज़र में इससे बड़ी बेशर्मी और कुछ नहीं ! उसके लिए प्रेम यानी कि 24 कैरेट शुद्ध सोना |

उलझन और बढती जा रही है | उसने कहीं से सुन लिया है कि हसीना के घर रिश्ते आ रहे हैं | शादी !! ये कैसे हो सकता है !! कोई अदना - सा आदमी जिसे प्रेम की ‘अपरिभाषित वाली परिभाषा’ तक मालूम हो वह हसीना से विवाह करेगा !! फिर वही ‘किस’ और ‘सेक्स’ ! उफ्फ ये कैसे हो सकता है ! वो ऐसा नहीं होने देगा | अब कुछ करना होगा |

कुछ करना होगा पर क्या ! उसे कुछ सूझ नहीं रहा |

कई महीने कई दिन गुज़र गए | उसने फ़रवरी महीने की विशिष्टता के बारे में भी सुना था | फ़रवरी के महीने में एक हफ्ता आता है जिसमें प्रेमी प्रेम का इज़हार किया करते हैं | पहला दिन यानी कन्या को पुष्प समर्पित करने का दिन | यूँ तो इस दिन लड़की भी लड़के को फूल देकर प्यार का इज़हार करती है | पर लड़की का इज़हार करना घोंचू को अच्छा नहीं लगा | घटिया पाश्चात्य व्यवहार!! कन्या से प्रेम किया जाता है | प्रेम के लिए निवेदन की अवधारणा बनी है | यह एक पुरुष आधारित कर्तव्य है | कन्या स्वयं ऐसा करे करे यह बात उसे जमी नहीं |

दूसरे दिन मीठा खिलाने की अवधारणा को भी घोंचू ने समझा | उसे फिर चिढ़ हुई कि बाज़ार व्यवस्था ने किस तरह मीठे के पर्याय चॉकलेट को बना कर इस पवित्र दिन को ‘चॉकलेट डे’ कह दिया | इसी तरह पूरे सप्ताह कुछ न कुछ चलता रहे और फिर 14 फ़रवरी को प्रेम का निवेदन | आहा ! सुन्दर ! घोंचू को इसमें कोई विचारधारात्मक आपत्ति नहीं लगी | सिवाय इसके विदेशीपन के!! घोंचू ने कई धर्मग्रंथ भी उलट पलट कर देखे ताकि वह सिद्ध कर सके कि ‘वेलेंटाइन डे’ की प्रेमपरक अवधारणा वस्तुतः भारत की देन है | इस काम में समय लग रहा है | अतः तय किया कि यह काम बाद में किया जाएगा | पहले उसे ‘स्वप्नप्रिया’ को उस ढोंगी आदमी से बचाना है जिसे प्रेम के बारे में कुछ नहीं पता पर जिसका विवाह उसकी स्वप्नप्रिया से तय होने वाला है|

Tuesday, 9 February 2016

घोंचू का भेलेनटाईन डे उर्फ प्रेम उर्फ बसंत पंचमी का ऐतिहासिक दिन #1

घोंचू ने किशोरावस्था में ‘गुनाहों का देवता’ पढ़ी थी| उसे रूमी का काव्य भी पसंद है | वह भावुक नहीं है | वह भावुकता की बौद्धिक स्वीकृति है | उसने किशोरावस्था में ही प्रण लिया था कि वह एक न एक दिन महान प्रेमी होगा | आज घोंचू युवा है | मतलब, युवा से थोड़ा आगे बढ़ गया है पर है युवा ही | दरअसल मामला ‘समझदारी’ का है | वो अपने हमउम्र लोगों से ज्यादा समझदार था इसलिए जब उसके दोस्त प्यार में थे उस समय घोंचू का मानना था कि वे सब ‘टटके इश्क’ में हैं | (टटका इश्क यानी कि चलताऊ इश्क) | इसी बीच उसकी उम्र थोड़ी - सी आगे खिसक गई पर उसे युवा राजनीतिज्ञ की तर्ज़ पर युवा ही माना जाएगा | बहरहाल, अब घोंचू प्रेम में है |

जी हाँ, प्रेम करता है वो हसीना से, सच्चा वाला | घोंचू अपनी कल्पना में उसे ‘स्वप्नप्रिया’ बुलाता है| यह नाम उसे प्रेम से और भी ज्यादा जोड़ देता है | मामला यह कि घोंचू हसीना से प्यार करता है|

बस यही है न दिक्कत !! जैसे ही कहा कि वो प्यार करता है वैसे ही आप समझने लगे की घोंचू के शरीर में हार्मोनल चेंज हो रहा है | यहीं तो धोखा खा गया इण्डिया | आप समझे नहीं ! दरअसल घोंचू इन सबसे बहुत ऊपर है | वो हार्मोनल चेंज से सर्वथा परे है | घोंचू को अगर हसीना पर सच्चा वाला प्यार न आया होता तो घोंचू पूरा जीवन सेक्स से परे रह कर साधना करता | ऐसा उसने कभी तय किया था | यह मजाक वाली बात नहीं है | यह बात उसने दोस्तों की महफ़िल में ताल ठोक के कई-कई बार कही है | पर हर बार वह चालाकी से हसीना का नाम छुपा लेता था | आप समझ रहे हैं न, उसके पास मौके की परख भी है |

उसने यह भी सोच कर रखा है कि जिस दिन वह हसीना से अपने प्रेम को जाहिर करेगा इस बात का ज़िक्र ज़रूर करेगा कि अगर वो उसे न दिखी होती तो वो उम्र भर घटिया इश्किया टाइप फ़िल्मी बात में नहीं पड़ता | खामख्वाह वाला ‘किस’ करके खुश होने वाला घटियापन उसे कतई बर्दाश्त नहीं|

Thursday, 12 November 2015

वह आया मेरे शहर में

क़ुतुब मीनार की ओर जाने वाली मेट्रो प्लेटफार्म नम्बर एक से रवाना होने वाली है.”

उसने सुना.. वह मेरे पास आया.. रुका.. फिर पूछा, “हुडा सिटी सेन्टर वाली (मेट्रो) कहाँ से जाएगी..?”

मैंने कहा, “यहीं से, या फिर इसी मेट्रो से चले जाइए, आगे जाकर एक स्टॉप पहले प्लेटफार्म पर उतर जाइएगा.. ठीक वहीं अगली मेट्रो आएगी.. वही पहुँचा देगी हुडा सिटी सेन्टर..”

उसने रूककर कहा.. “इतना कहाँ समझ में आता है मैडम!”

मैंने कहा, “यहीं रुके रहिये फिर, अगली मेट्रो का इंतज़ार कीजिये, अगली वाली जाएगी|”

वह कोने में जाकर खड़ा हो गया.

तब तक मेट्रो रवाना हो चुकी थी.

अगली मेट्रो का प्रतीक्षा समय 6 मिनट था.

"Meanwhile" (oil on canvas) - Achintya Malviya's work. 
अगली मेट्रो वह मेट्रो होगी जिसकी उसे ज़रूरत है, यह जान कर वह निश्चिन्त हुआ.

अब वह चारों तरफ आश्चर्य भाव से देख रहा था. वह चारों तरफ आश्चर्य से देखता रहा और मैं उसके देखने को!! वह रंग-बिरंगे कपड़ों में सजे-धजे इंसानों को देखता.. पूरी तरह.. ऊपर से नीचे तक देखता.. किसी के फोन पर हाथ हिला-हिलाकर बात करने को देखता.. किसी के फोन ऊपर उठा कर खींचीं जा रही सेल्फी को देखता.. किसी को प्लेटफार्म पर दिख रहे शीशे में अपने बालों को ठीक करते देखता.. कोने में खड़ी अपने “गोल्डन झुमकों” पर इतराती लड़की को उसने पूरी नज़र भर कर देखा..