Thursday 8 May 2014

हल्केपन से भरी - गंभीरता !



(गूगल-तस्वीरों के भंडार से )

मुझे नहीं पता कि यह बहुत गंभीर बात है या नहीं, पर हाँ इतना पता है कि बात सोचने पर मजबूर ज़रूर करती है. मेरे लिए यह सवाल तब खड़ा होता है जब मेरे कानों में किसी बड़े विद्वान की किसी गहन सोच विचार के बाद कही किसी गंभीर बात के अंत में यह आवाज़ भी सुनाई देती है कि, ‘चलिए बहुत हुई गंभीर बातें अब थोड़ा माहौल को हल्का किया जाए.’ आजकल गोष्ठियों, आयोजनों, अखबारों, समाचार चैनलों में बात को ‘हल्का’ कर देने की कोशिश साफ़ नज़र आती है. एक उदाहरण के तौर पर इसको साफ़-साफ़ तब भी देखा जा सकता है जब प्राइम टाइम पर बोलते बेहद जिम्मेदार दिखने वाले एंकर यह कह कर खुश होते हैं कि ‘चलिए बहुत गंभीर बातचीत हो गई अब माहौल को हल्का करने के लिए देखते हैं थोड़ा ये और थोड़ा वो.’

Saturday 3 May 2014

कुछ कहते हैं ये चेहरे..




जिंदगी है ये,

जीना चाहिए जिंदगी की तरह,

पर शायद है कुछ जहर-सा,

पी रहे हैं, जाने किस तरह!

कहना तो ये भी चाहते हैं बहुत कुछ,

पर चुप रह जाते हैं किसी असहाय प्राणी की तरह,,

सोचते हैं कि अगर यही जिंदगी है तो जी लेंगे,

जहर है तो क्या हुआ पी लेंगे!