जिंदगी है ये,
जीना चाहिए जिंदगी की तरह,
जीना चाहिए जिंदगी की तरह,
पर शायद है कुछ जहर-सा,
पी रहे हैं, जाने किस तरह!
कहना तो ये भी चाहते हैं बहुत कुछ,
पर चुप रह जाते हैं किसी असहाय प्राणी की तरह,,
सोचते हैं कि अगर यही जिंदगी है तो जी लेंगे,
न चाह कर भी चुप रह जाते हैं जो लोग,
वही कह जाते हैं बहुत कुछ, न जाने किस तरह!
जानते हैं हैं हम भी
और जानते हैं आप भी,
अपने दुःख के साथ छिपा जाते हैं ये कई राज़ भी!
(एक तस्वीर जो कहीं से मिल गई, जिसने भी खींची उसे धन्यवाद) |
इन चेहरों के पीछे
छिपा एक संसार है,
बताते हैं ये चेहरे कि इन्हें नहीं मिला प्यार है,
आशा है, तृष्णा है,
कुछ उम्मीदें हैं जो बाकी (!) हैं,
कह जाती हैं ये आँखें कि ये कई रातें जागी हैं,
इन आँखों ने भी देखे ख्वाब कुछ सुनहरे हैं,
बेचैन कर जाते हैं,
हाँ, कुछ कहते ये चेहरे हैं !!
(गूगल तस्वीर के अम्बार से) |
चेहरे पर एक मुस्कान
बिखेरते ये होंठ,
इनकी क्या दशा है!
इनकी क्या दशा है!
मन जो है प्यासा,
होंठों पर वही प्यास है,
बताते हैं ये चेहरे
कि इन्हें भी जिंदगी से थोड़ी आस है..
कहते हैं ये कि हम
भी किसी फूल के भवरें हैं...
आँखों में बस जाते
हैं,
हाँ, कुछ कहते हैं
ये चेहरे हैं !!
- प्रीति तिवारी
- प्रीति तिवारी
सितारे आके उनके जिस्म पे खुश्बू लगाते हैं
ReplyDeleteजो बच्चे रेल के डिब्बों में झाड़ू लगाते हैं..
संजीदा कविता...लम्बे समय बाद..