सुधीर
भाई जी चौधरी ने आज दिनांक 17 मार्च 2016 को एक अद्भुत एपिसोड प्रस्तुत किया | अब पेश है इसी महान कार्यक्रम आधारित
हमारा – ‘चिन्ना वाला डीएनए’ |
इस
कार्यक्रम में सुधीर भाई जी चौधरी साहब ने ‘World Happiness Index’ की ताज़ा रिपोर्ट के हवाले से ‘खुशी’ पर एक लम्बा प्रवचन पेश किया | उन्होंने
इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भारत में लोगों के दुखी होने के पीछे कई वजहें शामिल
हैं| आइए सबसे पहले उन वजहों में से कुछ अहम
वजहों पर एक नज़र डालें –
1)
भारत में लोग पडोसी की खुशी से ‘जलते’ हैं|
2)
भारत में लोगों को दूसरे की कार या उनके घर आया सामान देख कर ‘ईर्ष्या’ होती है|
3)
भारत में लोगों को चारों तरफ सिवाए ‘नकारात्मकता’ के कुछ नहीं दिखाई देता|
4)
भारत में लोग दूसरों के प्रमोशन से भी खुद की तुलना कर ‘दुःखी’ हो जाते हैं|
5)
भारत में बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो नाखुश रहने की एक बड़ी ‘साइकोलॉजिकल’ बीमारी से ग्रस्त हैं जिस कारण वे खुश
होने से घबराते हैं|
6)
ऐसा दुःख फैलाने का काम कुछ तो स्वभावग्रस्त है और कुछ लोग ऐसा माहौल बना रहे हैं
ताकि दुःख की मात्रा में वृद्धि की जा सके|
7)
इन दुःख फैलाने वालों में वो ‘मीडिया’ के लोग भी शामिल हैं जो बात बात पर ‘काली स्क्रीन’ कर खबर नहीं दिखाते|
8)
इनमें शामिल कुछ ऐसे मीडिया चैनल हैं जो केवल नकारात्मक खबर दिखाना ‘पसंद’ करते हैं|
9)
इस दुःख की मात्रा उन लोगों ने भी बढ़ाई हैं जो ‘भारत माता की जय’ जैसी
ज़रा सी चीज़ खुश होकर बोलने की बजाय उस पर बहस करने लगते हैं|
10)
इस बात पर भी पर्याप्त बल दिया कि कुछ लोग ‘क्रोध’ को बढ़ा कर खुशी की मात्रा में कमी कर
रहे हैं|
11)
कुछ और वजहें भी क्रमशः बताई गईं – सूखा
झेल रहे इलाकों में किसान ‘आत्महत्या’ कर रहे हैं इससे दुःख फ़ैल रहा है, भारतीय महिलाएं भारतीय पुरुषों की
तुलना में कम खुश हैं (दरअसल ज्यादा दुखी हैं), इसके
अतिरिक्त ‘रोज़गार’ (बेरोजगार!) की समस्या भी बड़ी समस्या है|
समाचार
प्रस्तुति में अन्त तक आते हुए उन्होंने निर्णायक फैसला देते हुए यह भी बताया कि ‘छोटी छोटी बातों में’ खुश होना बहुत आसान सा काम है, ना जाने कैसे लोगों ने बड़ी बड़ी बहसें
कर इसे मुश्किल बना दिया!
कार्यक्रम
में अपनी तथा अपने महान चैनल के योगदान पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने यह बताया कि किस
प्रकार उनका चैनल ‘पॉजीटिव खबरें’ दिखाने के लिए प्रतिबद्ध है, तथा वे रोज़ ‘शुभ’ खबरें पेश करते हैं जिससे की ‘खुशी’ को बढ़ावा दिया जा सके|
इस
प्रकार उन्होंने तमाम भारतीयों को ‘छोटी
छोटी बातों पर’ खुश रहने की हिदायत दी|
तो
इस कार्यक्रम के आधार पर पेश है ‘चिन्ना
वाला डीएनए’ –
1) “भारत में लोग पडोसी की खुशी से जलते
हैं” कहने वाले सुधीर भाई जी चौधरी लगातार
इस बात से आहत नज़र आए कि World
Happiness Index की
रिपोर्ट में भारत का स्थान 118वां है जबकि भारत का ‘पडोसी’ पाकिस्तान जैसा देश 92वे स्थान पर है!!
(विस्तृत रिपोर्ट के अनुसार चीन 83, पाकिस्तान 92, नेपाल 107, बांग्लादेश 110, श्रीलंका 117 वीं पायदान पर है, यानी कि भारत इन सभी पड़ोसियों की तुलना
में प्रमोटेड पास हुआ है|)
मियाँ अगर दौड़ ही करनी है तो डेनमार्क
से कीजिये वो पहले पायदान पर है|
(फोटो - टीवी का स्क्रीन और मोबाइल का कैमरा, एडिट - पेन्ट ब्रश के माध्यम से) |
2) भारत में लोगों को दूसरे की कार या उनके घर
आया सामान देख कर ईर्ष्या होती है, जैसा
विश्लेषित वाक्य कहने वाले सुधीर भाई जी चौधरी कार्यक्रम में लगातार यह दोहराते
रहे कि वे दूसरे चैनलों की तरह टीआरपी पर नहीं बल्कि खुशियों का ख्याल करते हैं!
ऐसा बार बार दोहराते हुए उनके वाक्यों में टीआरपी की ‘ईर्ष्या’ को देखा जा सकता है!
3)
भारत में लोगों को चारों तरफ सिवाए ‘नकारात्मकता’ के कुछ नहीं दिखाई देता, कहने वाले इस महान रिपोर्टर ने ‘क्रोधवश’ यह कसम खा ली कि ‘ईंट
का जवाब पत्थर से देते हुए’
यह व्यक्ति सिवाए ‘सकरात्मकता’ के और कुछ नहीं देखेगा| इन्हें भविष्य में यदि मृत्यु की खबरों
पर भी मुस्कुराता हुआ पाया जाए तो उसका श्रेय इनके प्रसन्नचित्त को दिया जाए|
4)
भारत में लोग दूसरों के प्रमोशन से भी खुद की तुलना कर दुःखी हो जाते हैं|, कहने के तुरन्त बाद सुधीर भाई जी चौधरी
तकरीबन अवसादग्रस्त होते हुए यह कह रहे थे कि वर्ल्ड हैपीनेस इंडेक्स में भारत चीन, बांग्लादेश, भूटान “यहाँ तक कि श्रीलंका” से
भी पीछे है! ध्यान दें प्रमोशन से जलना गलत आदत है पर “भारत और तो और .... यहाँ तक कि
श्रीलंका से भी पीछे है|”
5)
भारत में बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो नाखुश रहने की एक बड़ी ‘साइकोलॉजिकल’ बीमारी से ग्रस्त हैं जिस कारण वे खुश
होने से घबराते हैं|, ऐसा बताने के बाद चौधरी जी ने इस
बीमारी का हिन्दी में लगभग अर्थ बताते हुए ‘नज़र
लगना’ भी कहा| ध्यान दिया जाए कि भारत को पिछले कुछ वक्त में कुछ लोगों की ‘नज़र’ लग गई है जैसे वाक्यों का इस्तेमाल करते हुए उन्हें पाया गया है| इस कार्यक्रम के दौरान इसी बीमारी के
कुछ लक्षण उनमें मौजूद दिखाई दिए|
(फोटो - टीवी का स्क्रीन और मोबाइल का कैमरा, एडिट - पेन्ट ब्रश के माध्यम से) |
6), 7), 8)
क्रमशः तीन बिन्दुओं का सम्बन्ध ‘मीडिया’ से था| जिसमें ‘काली स्क्रीन’ चलाने वाले, जानबूझ कर नकारात्मक खबर दिखाने वाले, दुःख का माहौल बनाने वाले लोगों का
ज़िक्र था| कृप्या ध्यान दें, इस सभी बातों का सम्बन्ध उनकी उन बेचैन
रातों से नहीं है जिनमें किसी अन्य चैनल या मीडियाकर्मी को प्राप्त सुर्ख़ियों ने
उनकी नींद को बाधित किया|
9)
इस दुःख की मात्रा उन लोगों के उस समूह ने भी बढ़ाई हैं जो ‘भारत माता की जय’ जैसी ज़रा सी चीज़ खुश होकर बोलने की
बजाय उस पर बहस करने लगता हैं|, इस
परम वाक्य को कहने वाले चौधरी साहब भूल गए कि अपनी ‘माता’ की जय भी वही समुदाय कर सकता है जिसने ‘श्रद्धा’ भाव से दूसरे की ‘माता’ की भी जय की हो|
10)
भारत में कुछ लोग ‘क्रोध’ को बढ़ा कर खुशी की मात्रा में कमी कर रहे हैं|, ऐसा कहते हुए चौधरी साहब पर्याप्त ‘क्रोधित’ नज़र आए| इसे भावावेश समझ कर नज़रंदाज़ करना ही
ठीक होगा| उनका ‘क्रोध’ ‘क्रोध’ नहीं बल्कि ‘प्रेम का मूल’ है |
11)
सूखा झेल रहे इलाकों में किसान ‘आत्महत्या’ कर रहे हैं इससे दुःख फ़ैल रहा है, भारतीय महिलाएं भारतीय पुरुषों की
तुलना में कम खुश हैं (दरअसल ज्यादा दुखी हैं), इसके
अतिरिक्त ‘रोज़गार’ (बेरोजगार!) की समस्या भी है बड़ी समस्या है|
अब इन ज़रा ज़रा सी बातों पर हम क्या
टिप्पणी करें, सम्भव है कि आत्महत्या करने से पहले वह
किसान इसलिए दुःखी हुआ हो क्योंकि उसके पडोसी किसान की कार उसकी कार से ज्यादा
लम्बी है!! यह भी सम्भव है कि आत्महत्या से पहले वह इस बात से भी क्रोध खाया हो कि
सूखा दिल्ली में क्यों नहीं पड़ता और ऐसा सोचने से उसके दुःख में इजाफा हुआ हो!!
जिसने आत्महत्या की, वह वजह कुछ भी बताए, अपना सच तो वही जानता है...
....और भारत
में रोज़गार (बेरोजगार!) की समस्या के बारे में टिप्पणी करते समय ना भूलें कि
किंगफिशर जैसे फर्म रोज़गार दे रहे हैं, बस
तनख्वाह ही रोक रहे हैं! ऐसे में यह भी कोई बड़ी समस्या नहीं जान पड़ती|
इतना
सब कुछ लिखते हुए मैं यह जरूर स्वीकार करुँगी कि आप श्री श्री चौधरी से मैं भी ‘ईर्ष्या’ करती हूँ क्योंकि एक टेबल पर बैठ कर बीस मिनट की डील से करोड़... माफ़
कीजिये ‘करोड़ों’ नहीं कमा सकती! मैं स्वयं बहुत ‘दुःखी’ हूँ इसलिए क्योंकि आप बहुत ‘खुश’ हैं और मुझे आपकी खुशी से ‘जलन’ हो रही है!
और
अन्त में एक निवेदन, वह यह कि प्रधानमंत्री जी निदा फ़ाज़ली
साहब पर क्या आए आप अपनी बात में शहरयार को ले आए.. मियाँ आप तो शहरयार जैसे शख्स
को ना ही सुनाएं तो अच्छा है..
“सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यों
है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है?” कहने वाले उन्हीं शहरयार ने यह भी कहा
है कि,
“अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया
में
कहीं
कुछ ज़्यादा है, कहीं कुछ कम है|”
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