Friday, 29 November 2013

शब्द के संदर्भ !


यह एक साधारण-सी घटना है जो विभिन्न स्थानों पर बहुत ही सामान्य तरीके से बार-बार घटित होती है।
चूंकि यह साधारणहोती है, शायद इसीलिए विमर्श का हिस्सा बनने से बच जाती है। बात दरअसल भाषा से जुड़ी है। पिछले लंबे अरसे से मैंने यह महसूस किया है कि भाषा अब केवल संप्रेषण का साधन न रह कर लक्ष्य सिद्धि का हथियार बनती गई है। बहुत-सी साधारण, लेकिन विशेष घटनाओं में से सबसे ज्यादा चौंकाने वाली घटना का संबंध संवेदनाऔर इससे बने शब्द संवेदनशीलसे है। दरअसल, आजकल किसी भी गंभीर मसले पर बातचीत के दौरान संवेदनशीलशब्द का प्रयोग आम हो चुका है। मसलन, चाक-चौबंद सुरक्षा के इंतजामों को देख कर ज्यों ही आप इस बात पर नाज करने लगें कि राज्य अपने नागरिकों के प्रति जिम्मेदारी को पूरा करने लगा है, ठीक तभी पास खड़े कुछ लोग आपका भ्रम एक फिल्मी अंदाज में तोड़ देंगे, यह कहते हुए कि ये स्थायी इंतजाम नहीं हैं, बल्कि किसी संवेदनशीलघटना या मसले के मद्देनजर किए गए हैं जो महज तात्कालिक हैं।

Thursday, 7 November 2013

पंडित बुद्धदेव दासगुप्ता के 'सरोद' के साथ एक संगीतमय शाम !


पंडित बुद्धदेव दासगुप्ता (मध्य) अपने सह कलाकारों के साथ.
   ‘संगीतशब्द कई मायनों में अन्य शब्दों से अलग है. ऐसा कहने के पीछे एक बड़ा कारण यह है कि जिस तरह तकरीबन हर शब्द को सुनने के साथ ही कई तरह की तय परिभाषाएँ दिमाग में घूमने लगती हैं वैसा संगीतशब्द सुनने के बाद नहीं होता बल्कि संगीतशब्द सुनने के बाद कानों में कई तरह की ध्वनियां बज उठती हैं जिनका सम्बन्ध किसी भी परिभाषा से नहीं होता. शायद यही वजह रही होगी जिसकी वजह से तमाम कोशिशों के बावजूद संगीतको परिभाषाओं से परे माना जाता है.