Thursday 14 August 2014

काश! तुम न लौटतीं वक्त पर...

मेरा यह कहना नादानी लगेगी आपको, यह हरकत बचकानी लगेगी आपको, पर सच तो यह है कि गलती आपकी है... आप सभी की है.. आप गुनाहगार हैं मेरे.. ऐसा कहने के पीछे कोई तर्क नहीं है, मेरे पास कोई सबूत नहीं है, बस एक निराशा है, कोरी निराशा!! काश.. काश तुम न लौटतीं वक्त पर!!

 'मैं' सभी लड़कियों की बात कर रही हूँ और सभी से कर रही हूँ. हाँ तुम से जो अपने पिता का हुक्म मान कर घर से बाहर ही नहीं निकलती हो..
हाँ, तुमसे भी जिनके भाई ज्यादा दिलदार बनते हैं और कहते हैं कि जाओ पर शर्त यह है कि शाम चार बजने से पहले घर लौट आना वरना आगे से मैं तुम्हारा साथ नहीं दूँगा और तुम उनकी इस शर्त को मान लेती हो..
हाँ, तुम भी मैडम जो अपने आप को बहुत 'मॉर्डन' समझती हो और शाम को 6 से 7 के बीच घर पहुँच कर अपनी हाजिरी लगाती हो..

तुम सब गुनहगार हो मेरी! हाँ, तुम सब क्योंकि तुम घर वापस लौट कर उस रास्ते को मेरे लिए अकेला कर जाती हो जिस पर देर रात बहुत से मर्द चला करते हैं पर 'मैं' चाह कर भी नहीं चल पाती..
हाँ तुमने उस रास्ते को शाम से पहले अकेला कर छोड़ने का वह काम किया है जिससे उस सड़क पर चलती हुई 'मैं' अजनबी-सी दिखाई देती हूँ..

तुम सब लौट जाती हो.. 'मैं' जाना चाहती हूँ उस रास्ते पर उतनी ही सहजता से जितनी सहजता से वहाँ से तुम्हारे ही भाई और पिता गुजरते हैं.. पर 'मैं' खटकती हूँ उन्हीं की नज़रों में क्योंकि वो जानते हैं कि तुम शाम पांच बजे दाखिल हो चुकी हो घर में और सुरक्षित हो पूरी तरह से.. अगर तुम भी तय किए हुए उनके वक्त पर नहीं लौटती तो उन्हें उसी सड़क पर हम आमने-सामने से गुजरते हुए दिखाई दे जाते.. पर ऐसा नहीं है... उन्हें वहाँ नियम तोड़ती एक गुस्ताख़ लड़की दिखाई देती है पर 'मैं' नहीं !

तुम नहीं जाती किसी दोस्त का जन्मदिन मनाने उसके घर, रुकने उन अपने ही दोस्तों के साथ उनके घर,  नहीं जाती तुम और ऐसा करके तुम रोक देती हो मेरा भी जाना जन्मदिन और त्योहारों पर.. जानती हो अगर तुम जाती तो क्या होता...??  हम सभी एक-दूसरे के घर पर सुरक्षित होते और बहुत खुश होते.. पर तुम नहीं जाती.. अपने ही घर रहती हो इसलिए मेरा जाना 'असामान्य' नज़र आता है.. आना भी चाहिए... तुम्हारे घर पर होने से मेरे जाने के 'मायने' बदल जाते हैं..  मेरे जाने के मतलब निकाले जाते हैं..  कुछ-कुछ बगावत जैसा ही तो नज़र आता है.. उस जाने के और भी कई मतलब हो जाते हैं.. अचानक ही 'चाल-चलन' जैसे कुछ शब्द सुनाई देते हैं...

अब प्लीज़ मुझे इन न्यूज़ चैनलों का हवाला मत देना... ये आईबीएन हो या आईबीएन7, स्टार न्यूज़ कम एबीपी हो या इंडिया टीवी या इंडिया न्यूज़.. होंगे ये सारे बड़े चैनल्स पर 'मैं' नहीं देखती इन्हें.. इनकी खबरों में मुझे कोई चिंता नज़र नहीं आती.. न मेरे लिए और न ही तुम्हारे लिए ... यह मेरी आज़ादी के नए दुश्मन हैं जो 'हमदर्द' का नक़ाब पहन कर मेरे लिए नए नियम बनाने की पृष्ठभूमि हर दिन और हर घंटे एक नई शक्ल में तैयार करते हैं ... तुम्हें ही मुबारक हो ये देश दुनिया की तमाम खबरें और उन्हें सुना कर तुम्हारी हिफ़ाज़त करने वाले ये हमदर्द..

माफ़ करना बहुत नासमझ हूँ इसलिए एक बहुत छोटा सवाल पूछ रही हूँ... यह जो लौट के घर जाती हो तो क्या 'सुरक्षित' हो जाती हो..??? ज्यादा हादसे तो आज भी उसी 'घर' में होते हैं जहां लौट के जाती हो...नहीं नहीं.. डराना मेरा मकसद नहीं है.. बस इतना है कि अगर 'घर' जैसी जगह को महफूज मान सकती हो तो सड़क से इतना खौफ़ क्यों !!

अरे इस सब से अलग ज़रा एक बात तो बताओ .. क्या तुमने दिल्ली देखी है? नहीं! नहीं! 'प्राचीन स्मारकों' वाली कक्षा 5 वाली दिल्ली नहीं बल्कि वो दिल्ली जो हर गली हर मोहल्ले में बसती है .. काश देखी होती.. इश्क हो जाता जिन्दगी से.. 'मैं' तुम्हारे भरोसे नहीं हूँ इसलिए देखी है पूरी दिल्ली.. दिन भर अकेले घूम-घूम कर पर अफ़सोस रात में दिल्ली को देखने का ख्वाब अब भी अधूरा है मेरा.. उसे देखने में मेरा साथ नहीं देती हो तुम.. दे भी नहीं सकती.. क्योंकि तुम्हें वक्त पर लौटना शायद बेहतर लगता है.. पर एक दिन 'मैं' पूरा करुँगी अपने इस ख्वाब को भी...बिना तुम्हारी मदद के... एक और गुस्ताखी ही सही..

'मैं' जाना चाहती हूँ हर उस जगह जहां भी मेरा मन हो, घर लौटना चाहती हूँ अपनी मर्ज़ी से, मजबूरी में कभी कभार नहीं, हमेशा एक आदत की तरह, जीना चाहती हूँ इसी तरह... पर निराश हूँ, बहुत ज्यादा तो नहीं पर कम भी नहीं क्योंकि तुम सारी ही लडकियां दुश्मन हो मेरी, मेरी आज़ादी की, गुनाहगार हो मेरी, तुमने सूनी छोड़ दी हैं गलियाँ मेरे लिए,  तुमने ही तय किए नियम मेरे लिए खुद नियमों को मान कर,
तुमने मुश्किल बनाई है मेरी जिंदगी..
काश तुम न मानती उन नियमों को..
काश .. काश तुम न लौटतीं वक्त पर ...!

2 comments:

  1. बधाई आपको अच्छे लेखन के लिए और दिल से कही गयी बात को सार्थक ढंग से समाज तक पहुचने के लिए

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  2. :) धन्यवाद आपका.

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