(आनंद पटवर्धन के
लेक्चर का अनूदित व संपादित संस्करण, मूल लेख के लिए क्लिक करें- http://patwardhan.com/?page_id=2640 )
अनुवाद -
प्रीति तिवारी
गाँधी का हत्यारा
नाथूराम गोडसे ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ (आरएसएस) का सदस्य था और ‘हिन्दू महासभा’ से भी
जुड़ा था। हत्या में बराबर के हिस्सेदार नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे ने जेल से बाहर
आने के बाद एक इंटरव्यू में इस बात को स्वीकारा कि नाथूराम और उसने कभी आरएसएस
छोड़ा ही नहीं था। यही नहीं उसने आरएसएस और सावरकर को बचाने के लिए झूठ भी बोले थे।
गाँधी की हत्या के
बाद गोलवलकर व अन्य आरएसएस कार्यकर्ताओं को जेल भेज दिया गया। रामचंद्र गुहा लिखते
हैं, “(हत्या से दो महीने पहले) 6 दिसम्बर 1947 को गोलवलकर ने दिल्ली के करीब गोवर्धन शहर के
पास, आरएसएस कार्यकर्ताओं की एक बैठक बुलाई। पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार इस बैठक
में यह चर्चा हुई कि किस तरह कांग्रेस के प्रमुख व्यक्तियों की हत्या की जाए ताकि
जनता में मन आतंक पैदा किया जाए और उन्हें अपनी जद में लिया जाए।”
एम एस गोलवलकर |
आरएसएस के पास लिखित संविधान और आधिकारिक सदस्यों की कोई सूची न होने के कारण गाँधी की हत्या में आरएसएस की संलिप्तता कभी साबित नहीं हो सकी। अतः जून 1949 में आरएसएस से प्रतिबंध हटा लिया गया। जिन्हें यह लगता है कि गाँधी की हत्या पूरी तरह से एक पृथक कृत्य था उन्हें फिर से सोचने की ज़रूरत है।