पुरानी दिल्ली के चक्कर (1)
पहले आपके लिए यह तय करना ज़रूरी है कि आप देसी आभास किसे मानते हैं? अक्सर चांदनी चौक घूमने गए लोग मेट्रो से निकल कर सुविधाजनक रास्ता पकड़ मैकडोनाल्ड, बीकानेरहाउस और हल्दीराम्’स में बैठ जाते हैं और लौट कर कहते हैं कि उन्होंने चांदनी चौक देखा । बड़ा ही कंजस्टेड है। हाउ लो-क्लास!
पहले आपके लिए यह तय करना ज़रूरी है कि आप देसी आभास किसे मानते हैं? अक्सर चांदनी चौक घूमने गए लोग मेट्रो से निकल कर सुविधाजनक रास्ता पकड़ मैकडोनाल्ड, बीकानेरहाउस और हल्दीराम्’स में बैठ जाते हैं और लौट कर कहते हैं कि उन्होंने चांदनी चौक देखा । बड़ा ही कंजस्टेड है। हाउ लो-क्लास!
अगर चांदनी चौक
घूमना है तो पहले अपने पर्स और मोबाइल को अपने बैग में गहरे दबा दीजिए ताकि ‘साफ़’
ना हो जाए और फिर उतर जाईये भीड़ में.. चलने का हौसला रखिए क्योंकि हर जगह पलट कर
सेल्फि खींचने का मौका यहाँ आसानी से नहीं मिलता.. फिर देखिये गली गली और मोहल्ला..
तस्वीर - शुभम गुप्ता पुरवार |
यहाँ आज भी आँगन
वाले घर हैं.. खिड़की आज भी वो मजबूत तख़्त वाली लकड़ियों से बनी हैं जिन्हें आज के
बच्चे हाथ लगा कर खोलने में हांफ जाते हैं.. ‘खट खट खट’ कर लगने वाले ट्रिपल
सिक्योरिटी वाले ताले यहीं मार्केट में तो बिकते हैं पर नज़र उठा के देखिये वहाँ
किसी घर में ये ताले लगे हुए नहीं दिखेंगे। वहाँ आपको दिखेंगे बड़े किवाड़। आप सोच
रहे होंगे कि अब दरवाजों को ‘किवाड़’ कौन बोलता है? दस पन्द्रह घरों के आगे से
गुजरिये.. ये ‘किवाड़’ शब्द आपको सुनाई दे जाएगा।
हर गली से गुजरते
हुए चाय के अड्डे मिलेंगे। उबलती हुई चाय की खुशबू जब आप महसूस करेंगे तो याद आएगी
ढाई सौ रूपये वाली मॉल वाली चाय, कॉफी और यह भी याद आएगा कि कितना ठगा है दुनिया
ने आपको !!
हर गली में दाखिल
होने से पहले आसपास दिख रहे भाईबंधु से पूछिए कि यह गली कहाँ निकलती है ? तब आपको
एह्साह होगा कि एक गली चावड़ी बाज़ार निकलती है तो एक गली बल्लीमारान से दरीबे तक ले
जाती है, तो एक सीधा दरिया गंज के फाटक तक पहुँचा देती है । कोई जामा मस्जिद तो
कोई चितली कब्र का रुख करती है । आज जहाँ आप धौला कुआं के फ्लाईओवर पर एक गलत टर्न
लेते ही डेढ़ घंटे का नुकसान करवा लेते हैं वहाँ ये गलियाँ गलत रुख लेने पर भी कहीं
ना कहीं से जोड़ कर आपको मंजिल तक पहुँचा देती हैं।
तस्वीर - एहतिशाम अली सिद्दीकी |
..और आपने उन
लड़कियों का ज़िक्र तो सुना होगा तो गोलगप्पे खाने के बाद पानी और सौंठ मांगने के
लिए बदनाम कर दी गईं हैं, आप एक बार चांदनी चौक का रुख कीजिये.. यहाँ चटपटी कचौरी
के साथ दही मांगते लड़कों की लाइन जब देखेंगे तो उन लड़कियों को और उन पर बनने वाले
सोशल मीडिया टाइप जोक्स को भूल जाएंगे.. यहाँ लड़के अभी तक ‘डूड’ नहीं हुए हैं
जिन्हें दही और सौंठ मांगने में शर्म आती है.. वे बेहिचक बोलते हैं, “यार और दे ना
यार, हम लड़की नहीं हैं तो हमें नहीं देगा क्या..? देख कंजूसी मत करियो..”
देखना है चांदनी चौक
तो पैदल चलिए थोड़ा, कष्ट दीजिए खुद को, वरना इंतज़ार कीजिये किसी ‘दिल्ली 6’ टाइप फिल्म का जो दावा करे कि उसमें ‘रियल
दिल्ली’ देखने को मिलेगी। ‘रियल दिल्ली’ कैसी है सोच कर मत जाइए! जाना है तो
तुरन्त जाइये, इससे पहले कि वहाँ की ‘पाव-भाजी’ वाली रेडी पर भी ‘मोमोज’ बिकने
लगें! जानते हैं ना, समय तेज़ी से बदल रहा है!